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सड़क सुरक्षा की चुनौतियां: चिंता एंव चिंतन का विषय पर जनजागरुकता व्याख्यान
देहरादून। पद्म श्री डॉ. बी.के.एस. संजय ने कहा कि सड़क सुरक्षा की चुनौतियां चिंता एवं चिंतन का विषय है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत देश मे 5 लाख से ज्यादा दुर्घनाएं हो रही हैं जिसमें लगभग एक तिहाई लोगों की मौत हो रही है और लगभग इतने ही किसी ना किसी तरह की दुर्घटना में बचने के बाद किसी ना किसी तरह की विकलांगता से जूझ रहे हैं। केवल एक तिहाई लोग ही दुर्घटना के बाद अपनी सामान्य जिन्दगी जी पा रहे हैं।
सड़क सुरक्षा की चुनौतियां और चिंता तथा चिंतन विषय पर मॉर्डन दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के तत्वाधान मे आयोजित जन जागरूकता व्याख्यान मे डॉ. संजय ने बताया कि सड़क दुर्घनाओं ने एक महामारी का रुप धारण कर लिया है। दुर्घनाएं होने के बाद हर आदमी की गरीबी बढ़ रही है। गरीब आदमी और गरीब होता जा रहा है। डॉ. संजय ने यह भी बताया कि दुर्घनाओं के बाद पारिवारिक एंव सामाजिक रिश्तों मे दरारें पड़ रही हैं, घर टूट रहे हैं, वैवाहिक बंधन टूट रहे हैं और इसके अतिरिक्त मानसिक तनाव बढ़ रहा है।
दुर्घनाओं से एक बहुत बड़े और महत्वपूर्ण समाज के मानव संसाधन की क्षति हो रही है। डॉ. संजय ने बताया कि उनके शोध के अनुसार 90 प्रतिशत दुर्घनाएं चालक की लापरवाही से होती हैं। लापरवाही एक व्यवहारिक समस्या है जिसका यदि कोई चाहे तो किसी भी समय किसी भी व्यवहारिक आदत को बदल सकता है। दुर्घटना के मुख्य कारण हैं आगे निकलने की होड़ में तेज गति मे गाड़ी चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना और गाड़ी चलाते समय मोबाइल का प्रयोग करना इत्यादि। व्यवहारिक आदतें या समस्या जिनको यदि व्यक्ति चाहे तो बदलाव लाया जा सकता है। किसी भी बदलाव के लिए विचारों का बदलना प्रथम कारक होता है। हमारी संस्था सड़क सुरक्षा से संबधित जो अभियान चला रखा है इससे विचारों का बदलने का उददेश्य ही काम कर रही है। डॉ. संजय ने बताया कि इससे सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।
कार्यक्रम मे अतिथि वक्ता ऑर्थोपीडिक सर्जन डॉ. गौरव संजय ने बताया कि दुर्घनाओं में मरने वाले 50 प्रतिशत से अधिक लोग 15 से 35 साल के लोग होते हैं जो कि देश का भविष्य हैं। हम सब लोगो को अपने और जनहित में यातायात के नियमो को सीखना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। हेलमेट एंव सीटबेल्ट का प्रयोग ना केवल दुर्घनाओं की संख्या बल्कि उससे होने वाले खतरों को भी कम करती है। अपने प्रदेश में जहां 2000 में राज्य गठन के समय प्रदेश की जनसंख्या लगभग 80 लाख थी तब 4 लाख वाहन थे। 2022 में उत्तराखण्ड की जनसंख्या 1 करोड़ 20 लाख थी जबकि 30 लाख वाहन बढ़ गये है और बढती हुई वाहनों की संख्या और उसी तुलना में सड़कों का ना बढना एक चिंता का विषय है।
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि आरटीओ शैलेश तिवारी ने कहा कि आमने सामने की वाहनों तेज गति में चलने पर भिंडन्त होने पर लगने वाला बल दुगना हो जाता है इसीलिए आमने सामने के भिडंत अधिकांशत जानलेवा हो जाती हैं। उल्टी दिशा चलने पर आर्थिक दंड जो 25 हजार तक बढ चुका है और इसके अलावा 3 साल की सजा होने का प्रावधान है। आयोजकों को तथा श्रोताओं ने अपने विचाार व्यक्त करते हुए कहा कि सड़क सुरक्षा के संबंधित जानकारी का प्रचार प्रसार बहुत बढाना चाहिए और इस तरह के कार्यक्रम जगह -जगह पर खासतौर से स्कूलों और कॉलेजों मे किये जाने चाहिए।