देहरादून। जिस बात की आशंका थी, आखिरकार वही हुआ। अवैध खनन से लहुलुहान हुई सुखरो नदी ने कोटद्वार भावर की लाइफ लाइन सुखरो पुल के भारी भरकम पिलर की चूले हिलाकर रख दी और यह पुल क्षतिग्रस्त हो गया। गुरूवार देर रात पहाड़ी क्षेत्रों में हुई भारी बारिश के बाद अब पुल का एक पिलर पूरी तरह से खोखला हो गया है। इससे पुल लगातार नीचे धंस रहा है। सुरक्षा कारणों को देखते हुए प्रशासन ने पुल पर आवाजाही पूरी तरह से रोक दी है।
भाजपा की पिछली सरकार मे कोटद्वार क्षेत्र में राजस्व विभाग की ओर से सुखरो नदी में रीवर ट्रेनिग के पट्टे जारी किए गए थे वहीं मालन व सुखरो नदियों में वन क्षेत्र के अंतर्गत रीवर चैनेलाइजेशन के नाम पर धड़ल्ले से खनन किया गया। हालांकि रिवर ट्रेनिंग के नाम पर चल रहा खनन बंद हो गया, लेकिन नदियों में खनन आज भी बंद नहीं हुआ है। स्थानीय लोगों ने कहा कि सिस्टम की मिलीभगत के कारण पुल टूटने की हालत में पहुंच गया है।
सूचना मिलने के बाद मौके पर पहुंचे लोनिवि के अधिकारियों ने जेसीबी से नदी के पानी को डाइवर्ट किया गया है। हालांकि अब अधिकारी खनन रोकने के लिए किये गए पत्राचार और कोशिश के बारे मे तमाम दावे कर रहे है।
प्रदेश मे अवैध खनन को लेकर विपक्ष के निशाने पर कोटद्वार क्षेत्र रहा है। हालांकि चुनाव से ठीक 6 महीने पहले सरकार को पता लगा कि कोटद्वार मे खनन जोरों पर है। क्षेत्रीय विधायक और तत्कालीन भाजपा सरकार मे वन मंत्री डॉ हरक सिंह रावत ने डीएफओ लैंसडाउन को ससपेंड कर दिया था। वहीं अवैध खनन पर जांच बिठा दी थी। लेकिन हुआ वही जिसकी आशंका थी। नदी मे बिना वैज्ञानिक आधार के जिस तरह से खनन हुआ उससे नतीजा अब सामने आ गया।
कोटद्वार के पूर्व विधायक और वरिष्ठ कांग्रेस नेता शैलेन्द्र सिंह रावत का कहना है कि पुलों को लेकर खतरे की आशंका पहले से ही जतायी जा रही थी। खनन के लिए नीति मे ही खामी थी। इसके लिए सरकार और अधिकारी दोनों ही जिम्मेदार है। जैसे ही पोकलेंड मशीन नदी मे घुसी तो उसने नदी का सीना चीर दिया। हालांकि क्षेत्र की जनता अवैध खनन रोकने के लिए लगतार मांग करती रही, लेकिन उनकी कोई सुनवाई हुई।