लैंसडाउन/रिखनीखाल। पर्वतीय अंचल मे पलायन से बंजर पड़े खेत खलिहान और उजाड़ होते मकानों के अलावा पालतू मवेशियों पर भी इसकी बड़ी मार पड़ी है। लोगों ने जब मैदानी क्षेत्रों की और रुख किया तो बरसों से खूंटे पर पले मवेशी उनके लिए बोझ बन गए। खेती काश्तकारी करने वाले लोग भी कम बचे तो न वह इन्हे बेच पाए और न ही कोई इन्हे रखने को तैयार हुआ। इसलिए उन्होंने इन मवेशियों को उनके हाल पर छोड़ दिया। अब घर न होने से इन मवेशियों ने गाँव की शरहद के आसपास ही अपना चलता फिरता ठिकाना बना लिया।
अब गाँव की शरहद के पास नदी किनारे छोड़ी गयी एक आवारा गाय ने बछड़े को जन्म दिया है। यह स्थल जनपद पौड़ी के रिखनीखाल- सिद्धखाल के पास पूर्वी नयार नदी के पास है। कुछ दिन पहले नयार नदी में 11 आवारा पशु नदी के तेज बहाव के बीच नदी में फंस गये थे,जिन्हें बामुश्किल पानी का बहाव कम होने पर बाहर निकाला जा सका।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता आशु जोशी ने बताया कि उनमें से एक गाय ने 2-3 दिन पहले नदी के किनारे ही नवजात बछड़े को जन्म दे दिया। बछड़ा स्वस्थ है, लेकिन कोई भी स्थानीय निवासी उस दुधारू गाय को पालने को तैयार नहीं है।गाय अपने दो तीन दिन नवजात बछड़े को लेकर नदी के आसपास व जंगल में घूमती फिरती नजर आ रही है।
कभी खेत खलिहान और गोठ की शान के साथ अर्थिकी की संवाहक रही गाय आज आवारा तथा बदतर जीवन व्यतीत कर रही है। पहाड़ों मे यह स्थिति गाँव गाँव मे है जहाँ पर पालतू मवेशियों का ठिकाना शरहदों के पास है। हालांकि अधिकतर बाघ या गुलदार के निवाला बन चुके है, लेकिन रोज किसी न किसी तरह जान बचाने मे कामयाब रहे मवेशी पलायन की असल तस्वीर को तो बयां कर ही रहे हैं।