वनभूलपुरा मामला रेलवे और न्यायालय के बीच, राज्य सरकार पार्टी नही:धामी

देहरादून। हल्द्वानी के वनभूलपुरा मामले मे सरकार ने स्थिति स्पष्ट की है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह  न्यायालय और रेलवे के बीच की बात है। राज्य सरकार इसमें कोई पार्टी नहीं है। उच्चतम न्यायालय का जो भी निर्णय आएगा, राज्य सरकार उस पर काम करेगी।

गौरतलब है कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद हल्द्वानी के बनभूलपुरा क्षेत्र में रेलवे भूमि के अतिक्रमण हटाने को लेकर प्रशासन ने तैयारी पूरी कर ली है। वहीं कांग्रेस मामले मे सरकार पर हमलावर है। उपवास पर बैठे पूर्व सीएम हरीश रावत ने इसे मानवीय त्रासदी बताते हुए सरकार से पीड़ितों के पुनर्वास की मांग की। दूसरी और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य का कहना है कि सरकार ने पीड़ितों का पक्ष सही ढंग से न्यायालय मे नही रखा। सरकार अभी भी न्यायालय मे ढंग से पैरवी कर सकती है। हल्द्वानी के बलभूरपुर मे 50 हजार की आबादी है और इस जमीन पर रेलवे का दावा है। अदालत ने प्रशासन को जमीन खाली कराने को कहा है। हालांकि बुधवार को मामले की सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई है।

 

वनभूलपुरा मामले मे जबाबदेही से बचने की कोशिश कर रही कांग्रेस: भट्ट

दूसरी ओर भाजपा संगठन ने हल्द्वानी के वनभूलपुरा रेलवे भूमि विवाद के लिए कांग्रेस को पूरी तरह से जिम्मेदार बताया। पार्टी ने कहा कि कांग्रेस जबाबदेही से बचने के लिए आरोप प्रत्यारोप तथा मुद्दे का राजनीतिकरण करना चाहती है।
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि इसमें राज्य सरकार पक्ष नही है और न ही भाजपा की कोई भूमिका है। उन्होंने कहा कि इसमे कांग्रेस इसलिए दोषी है क्योंकि, उसने समय रहते कोई प्रयास नहीं किया और मामला कोर्ट में जाने दिया।
पार्टी और सरकार इस पूरे मामले को राजनैतिक चश्मे से नहीं देखती है। मामला न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए सभी पक्षों को उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार करना चाहिए ।
उन्होंने कहा कि यह विवाद लंबे समय से चल रहा है, लेकिन कांग्रेस समेत पूर्ववर्ती सरकारों ने कभी विवाद के हल का प्रयास नहीं किया। आज इस प्रकरण में राजनैतिक बयानबाजी करने वाले कॉंग्रेस के तमाम नेता किसी न किसी रूप में तत्कालीन सरकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। ऐसे में उनके अनुसार यदि, कुछ गलत हो रहा था तो उन लोगों ने कोई बीच का रास्ता नही निकाला जो उसकी मंशा पर सवाल है।
प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है और 5 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में भी इस प्रकरण से संबन्धित याचिका पर सुनवाई होनी है । लिहाजा सभी पक्षों को राजनीति करने के बजाय न्यायालय के फैसले का इंतजार करना चाहिए।

 

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