उत्तराखंड के मदरसों में गूजेंगे संस्कृत के श्लोक, तैयारियों मे जुटा मदरसा एजुकेशन बोर्ड – News Debate

उत्तराखंड के मदरसों में गूजेंगे संस्कृत के श्लोक, तैयारियों मे जुटा मदरसा एजुकेशन बोर्ड

देहरादून। अब उत्तराखंड के मदरसों में जल्द ही संस्कृत के श्लोक भी सुनाई देंगे। इसके लिए उत्तराखंड मदरसा एजुकेशन बोर्ड ने तैयारियां शुरू कर दी है। इसके अलावा मदरसों में अरबी भी पढ़ाई जाएगी।

यह जानकारी देते हुए उत्तराखंड मदरसा एजुकेशन बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून काजमी ने कह कि दोनों प्राचीन भाषा एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। उत्तराखंड में मदरसा एजुकेशन बोर्ड और मदरसों में लगातार सुधार के चलते अब कई ऐसे नए प्रावधान किए जाएंगे, जिन्हें अब तक तर्कसंगत नहीं समझा जाता था। मदरसे को लेकर अब तक की धारणा खासतौर से एक अलग समुदाय की भाषा और संस्कृतिृ  समझी जाती थी, लेकिन अब इसे बदलने का प्रयास किया जा रहा है। मुफ्ती शमून काजमी ने बताया कि मदरसा बोर्ड की संस्कृत शिक्षा विभाग के साथ चर्चा हो गई है। जल्द ही एक एमओयू करने के बाद उत्तराखंड के सभी रजिस्टर्ड मदरसों में संस्कृत शिक्षा का भी अध्ययन करवाया जाएगा। वहीं, इसके अलावा पारंपरिक भाषा के रूप में अरबी शिक्षा का भी ज्ञान उत्तराखंड के मदरसा बोर्ड में पंजीकृत मदरसों में दिया जाएगा।

मुफ्ती शमून काजमी ने बताया कि संस्कृत और अरबी दोनों प्राचीन भाषाएं हैं। इन दोनों के कल्चर में काफी हद तक एक दूसरे से समानता है। उन्होंने कहा कि आज यदि मौलवी को ठीक से संस्कृत पढ़ा दी जाए और पंडित को ठीक से अरबी पढ़ा दी जाए तो दोनों समुदाय के बीच में कई सारे मसले अपने आप ही ठीक हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि निश्चित तौर से इससे सामाजिक सौहार्द में बड़ी उपलब्धि हासिल होगी। नई पीढ़ी को उर्दू, संस्कृत और अरबी भाषा का ज्ञान दिया जायेगा। उन्होंने बताया कि मदरसों में संस्कृत पढ़ाने के संबंध में उनकी ओर से संस्कृत विभाग के सचिव दीपक कुमार से मुलाकात की गई है। जिसके बाद ये फैसला लिया गया है कि संस्कृत विभाग के साथ एक अनुबंध किया जाएगा। जिसके अनुसार आने वाली नई पीढ़ी को उर्दू के साथ संस्कृति और अरबी जैसी प्राचीन भाषाओं का भी ज्ञान दिया। मुफ्ती शमून काजमी ने बताया कि इसकी वजह से आने वाले समय में ये नौजवान बच्चे दूसरे धर्म के लोगों से ज्यादा कनेक्ट हो पाएंगे। उन्होंने योग का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह से योग किसी धर्म विशेष का नहीं है। उसी तरह से भाषाएं भी सभी धर्म के जोड़ने का काम कर सकती है।

 

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