देहरादून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार पिथौरागढ के ज्योलिंगकोंग हैलीपैड पहुंचे और उन्होंने देश की आध्यात्मिक भूमि आदि कैलाश पहुंचकर दर्शन किये। शिव धाम आदि कैलाश आगमन पर प्रधानमंत्री मोदी का जोरदार स्वागत हुआ। इस दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी मौजूद रहे।आदि कैलाश मंदिर में रं-समुदाय के लामा पुजारियों ने पौराणिक काल से प्रसिद्ध शिव-पार्वती की ‘माटी पूजा’ पूरे विधि विधान के साथ संपन्न की।
इस स्थान पर माँ पार्वती ने रोपे धान
आदि कैलाश को कैलाश की ही संज्ञा मिली है। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर जब मां पार्वती को ब्याह कर कैलास जा रहे थे तो इस स्थान पर प्रवास किया। भगवान शंकर और माता पार्वती लंबे समय तक यहां पर रहे। पार्वती सरोवर बनाया। यहां पर मां पार्वती ने धान का रोपण किया था।
पार्वती कुंड में की आरती
लगभग 200 मीटर पैदल मार्ग पर बिछी रेड कार्पेट से पीएम मोदी पार्वती कुंड पहुंचे। जहां पर उन्होंने मंदिर में विधि विधान के साथ पूजा अर्चना , आरती, शंख और डमरू बजाया। पुजारी द्वारा पूजा कराई गई। बाद में पार्वती कुंड पर ध्यान लगाया और आदि कैलाश की परिक्रमा की।
आदि कैलाश और पार्वती सरोवर के दर्शन कर प्रधानमंत्री अभीभूत हो उठे। उन्होंने कहा कि आदि कैलाश के दर्शन कर उनका मन प्रसन्न और जीवन धन्य हो गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड देव भूमि है। यहां कण-कण में देवी देवताओं का वास है। भगवान आदि कैलाश के दर्शन कर उन्हें परम आनंद की अनुभूति हुई है। उन्होंने कहा कि देवभूमि के मंदिर आस्था ही नही आर्थिकी का भी केंद्र हैं। इन मंदिरों से हजारों लोगों की आर्थिकी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़ी है। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए सभी मंदिरों को एक सर्किट के रूप में विकसित किया जा रहा है।
गुरूवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ज्योलिंगकोंग हैलीपैड पर उतरे। जहां पर मुख सचिव एसएस संधू, मंडल आयुक्त दीपक रावत, सेना के अधिकारियों, बीआरओ अधिकारियों ने उनका स्वागत किया। पीएम मोदी ने स्थानीय लोगों द्वारा दिए गए वस्त्र रं व्यंठलो और पगड़ी पहनी। ज्योलिंगकोंग से पार्वती कुंड को रवाना हुए।
रं व्यंएठलो र परम्परा में पवित्र वस्त्र
रं व्यंएठलो र परम्परा में पवित्र वस्त्र माना जाता है। पुरुष प्रत्येक शुभ कार्यो और धार्मिक आयोजनों पर इसे पहनते है। प्रधानमंत्री के लिए उपहार के लिए व्यास घाटी के ग्रामीणों ने इसे तैयार किया था। स्थानीय परम्परा में पगड़ी पहनाने की प्रथा है।