संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि अगर भारत 2030 तक कड़े से कड़ा कदम नहीं उठाता है तो जलवायु परिवर्तन के नतीजे उस पर बहुत भारी पड़ने वाले हैं. क्या भारत सरकार इस चुनौती से निपटने को तैयार है?संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन पर गठित सरकारों के पैनल (आईपीसीसी) की सबसे ताजा रिपोर्ट में भारत को लेकर निराशानजनक तस्वीर पेश की गई है. उसने चेतावनी दी है कि भारत अगले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन से होने वाली बहुत सारी तबाहियों का सामना करने को विवश हो सकता है. रिपोर्ट के मुताबिक अगर 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती नहीं की गई तो जलवायु परिवर्तन जनित विनाश को रोक पाना अधिकारियों के लिए संभव नहीं होगा |
लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एंवायरेन्मेंट (लाइफ) नाम के एक संगठन से जुड़े वकील रित्विक दत्त ने डीडब्लू को बताया, “आईपीसीसी रिपोर्ट साफतौर पर दिखाती है कि बहुत सारे जलवायु और गैरजलवायु खतरे एक दूसरे से जुड़ेंगे और नतीजे में तमाम सेक्टरों और क्षेत्रों में तमाम किस्म के खतरों की गति को और तेज कर देंगे. भारत के सामने ये खास किस्म की चुनौतियां होंगी स्थानीय समुदायों के बीच अपने काम के लिए 2021 का राइट लाइवलीहुड अवार्ड जीतने वाले रित्विक दत्त कहते हैं, “भारत सरकार के लिए ये रिपोर्ट खतरे की घंटी की तरह है, उसे मुस्तैदी से निर्णय के सभी स्तरों में जलवायु चिंताओं को मुख्य जगह देनी होगी | 67 देशों के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की ये रिपोर्ट तैयार की है. इनमें से नौ भारत से हैं |