देहरादून। बैकडोर नियुक्तियों को लेकर अक्सर विवादों मे रहे उत्तराखंड विधान सभा मे एक बार फिर नियुक्तियों को लेकर सरगर्मियां बढ़ी है। हालांकि हर सरकार के कार्यकाल मे हुई यह नियुक्तियां अब परम्परा का हिस्सा बन गयी है।
2016 मे आचार सहिंता से पहले कांग्रेस सरकार मे विधान सभा अध्यक्ष रहे गोविन्द सिंह कुंजवाल ने 158 नियुक्ति कर डाली। इन नियुक्तियों मे चपरासी से लेकर अपर निजी सचिव तक के पद है। इन नियुक्तियों मे 32 लोग तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष की विधान सभा क्षेत्र के या उनके नाते रिश्तेदार थे। उनकी पुत्रबधू भी लाभार्थियों की सूची मे थी।
हालांकि मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा और तब आक्रामक रही भाजपा सरकार गठन के बाद मामले मे चुप्पी साधकर बैठ गयी।नयी भाजपा सरकार के गठन के बाद चुनाव आचार सहिंता से पहले फिर 70 नयी नियुक्तियां हो गयी तो तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष और वर्तमान मे वित्त मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल का कहना है कि सभी नियुक्तियाँ नियमानुसार की गयी है। मीडिया के सवालों के जवाब मे उन्होंने कहा कि आवश्कता के अनुुुसार नियुक्ति का अधिकार अध्यक्ष को है और सब नियम के अनुुुसार हुआ है। वहीं तीन प्रमोशन देकर डिप्टी सेक्रेटरी को विस का सचिव बनाने को भी उन्होंने जायज ठहराया और कहा कि नियमों मे शिथिलता देेेेकर उन्होंने पदोन्नति दी है।
मंत्रियो के चहेतो को नौकरी दिये जाने के सवाल पर उन्होंने कहा की इसमे कुछ गलत नही और वह उस परिधि मे आ रहे होंगे। उत्तर प्रदेश की विधान सभा की तुलना मे उत्तराखंड विधान सभा मे कई अधिक कार्मिको की नियुक्ति पर उन्होंने कहा कि जब मेन पॉवर की आवश्यकता होती है तो ऐसी नियुक्ति की जाती है। गैरसैण मे भी कार्मिको की आवश्यकता थी। इसलिए टेंपरेरी अरेजमेंट के तहत ऐसा किया गया है। वहीं नियुक्त लोगों के वेतन के लिए धन रिलीज उनके वित्त मंत्री बनने के बाद ही हुआ इस सवाल पर उन्होंने कहा कि यह भी नियम के तहत हुआ।
हालांकि विपक्ष की ओर से आरोप है कि प्रमोशन के मामले में एक साथ तीन प्रमोशन देने का विधानसभा अध्यक्ष को अधिकार नहीं है। मुकेश सिंघल को उस समय प्रभारी सचिव बनाया गया जब वह उप सचिव के पद पर थे और विधानसभा की नियामवली में प्रभारी सचिव की व्यवस्था नहीं है।
गौरतलब है कि वर्तमान मे राज्य अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्ती के पेपर लीक मामले की जांच कर रही एसटीएफ अब तक 26 गिरफ़्तारी कर चुकी है। सचिवालय रक्षक की भर्ती मामले मे भी एक गिरफ़्तारी हो चुकी है। अब कांग्रेस की ओर से विधान सभा मे हुई नियुक्तियों की जांच की भी मांग की जा रही है। हालांकि 2015 मे हुई पुलिस दरोगा भर्ती की विजिलेंस जांच के आदेश सरकार दे चुकी है। एसे मे कुंजवाल के बाद प्रेम चंद अग्रवाल का स्टैंड कतई चौकाने वाला नही माना जा सकता है।