देहरादून। सर्वत्र सेवा फाउंडेशन के तत्वाधान मे नगर निगम टाउन हॉल में आयोजित एक देश-एक विधान” विषयक संवाद सभा मे मुख्य वक्ता अश्विनी उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान कानूनी प्रावधान की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए देश में एकता और समानता को बढ़ावा देने के लिए जरूरी बताया।
उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उस विचार को सही ठहराया है, जिसमें कहा गया था कि देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता के लिए एक देश, एक निशान और एक प्रधान की नीति ही जायज है।
धारा 370 का हटाना, एक समान नागरिक संहिता इसी दिशा में जरूरी कदम है। उन्होंने बताया कि आर्टिकल 14 के अनुसार देश के सभी नागरिक एक समान हैं। आर्टिकल 15 जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। आर्टिकल 16 सबको समान अवसर उपलब्ध कराता है, आर्टिकल 19 देश मे कहीं पर भी जाकर पढ़ने, रहने, बसने, रोजगार करने का अधिकार देता और आर्टिकल 21 सबको सम्मान पूर्वक जीवन जीने का अधिकार देता है। आर्टिकल 25 धर्म पालन का अधिकार देता है, लेकिन अधर्म पालन का नहीं। रीतियों को पालन करने का अधिकार देता है लेकिन कुरीतियों को नहीं। प्रथा को पालन करने का अधिकार देता है लेकिन कुप्रथा को नहीं। देश के सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और एकीकृत “भारतीय नागरिक संहिता” लागू होने से आर्टिकल 25 के अंतर्गत प्राप्त मूलभूत धार्मिक अधिकार जैसे पूजा, नमाज या प्रार्थना करने, व्रत या रोजा रखने तथा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा का प्रबंधन करने या धार्मिक स्कूल खोलने, धार्मिक शिक्षा का प्रचार प्रसार करने या विवाह-निकाह की कोई भी पद्धति अपनाने या मृत्यु पश्चात अंतिम संस्कार के लिए कोई भी तरीका अपनाने में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा।
अलग-अलग संप्रदाय के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से नागरिकों के मन में गुलामी की हीन भावना व्याप्त है। भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक समग्र समावेशी और एकीकृत “भारतीय नागरिक संहिता” लागू होने से समाज को सैकड़ों जटिल, बेकारऔर पुराने कानूनों से मुक्ति ही नहीं बल्कि गुलामी की हीन भावना से भी मुक्ति मिलेगी। अलग-अलग पर्सनल लॉ लागू होने के कारण अलगाववादी और कट्टरपंथी मानसिकता बढ़ रही है और हम एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में त्वरित गति से आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं.भारतीय दंड संहिता की तरह सभी नागरिकों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र समावेशी एवं एकीकृत भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से “एक भारत श्रेष्ठ भारत” का सपना साकार होगा।
भारत मे सम्पत्तियों के प्रबंधन के लिए वक़्फ़ बोर्ड को दी गई असीमित शक्तियों पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि इसमें हिंदू और गैर इस्लामिक समुदाय को अपनी निजी और धार्मिक संपत्तियों को सरकार या वक्फ बोर्ड द्वारा जारी वक्फ सूची में शामिल होने से बचाने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
साथ ही वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग और वक्फ बोर्डों की जवाबदेही की कमी पर प्रकाश डालते हुए वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार, वक्फ बोर्डों की जवाबदेही की कमी, वक्फ अधिनियम के प्रावधानों की अनदेखी, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता की कमी पर बोलते हुए वक्फ अधिनियम में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि वक्फ संपत्तियों का सही तरीके से उपयोग किया जा सके और वक्फ बोर्डों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
देशभर में वक्फ की करीब तीन लाख संपत्तियां दर्ज हैं, जिसमे करीब चार लाख एकड़ जमीन है, इससे वक्फ देश में रेलवे और डिफेंस के बाद तीसरे नंबर पर सबसे बड़ा जमीन का मालिक है।
अश्विनी उपाध्यय जी ने यह भी बताया की वक्फ कानून की धारा-40 (Waqf Act 1995 Section 40) वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति के वक्फ संपत्ति होने या नहीं होने की जांच करने का विशेष अधिकार देती है। अगर वक्फ बोर्ड को यह विश्वास होता है कि किसी ट्रस्ट या सोसाइटी की संपत्ति वक्फ संपत्ति है तो बोर्ड उस ट्रस्ट और सोसाइटी को कारण बताओ नोटिस जारी कर सकता है की क्यों न उस संपत्ति को वक्फ संपत्ति की तरह दर्ज कर लिया जाए और इस बारे में बोर्ड का फैसला अंतिम होगा और उस फैसले को सिर्फ वक्फ ट्रिब्युनल में चुनौती दी जा सकती है। इस तरह ट्रस्ट और सोसाइटी की संपत्ति वक्फ बोर्ड की इच्छा पर निर्भर है।
इस संवाद सभा में विशिष्ट अतिथि के तौर पर न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह, मुख्य स्थाई अधिवक्ता चंद्रशेखर सिंह रावत, डॉ राजेश बहुगुणा, डॉ पारूल दीक्षित, कार्यक्रम अध्यक्ष वरिश्ठ अधिवक्ता टी० एस० बिंद्रा, सर्वत्र सेवा फाउंडेशन के अध्यक्ष अखण्ड प्रताप सिंह, सचिव विष्णु भट्ट, कोषाध्यक्ष शुभाँग गोयल, संरक्षक – डॉ गोपालजी शर्मा, अधिवक्ता बलदेव पाराशर,मार्तण्ड शंकर पंत ,एवं काफी संख्या में सामाजिक कार्यकर्ता एवं गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे।