देहरादून। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सोसायटी फॉर हेल्थ एजुकेशन एंड वूमैन इम्पावरमेन्ट ऐवेरनेस सेवा के तत्वाधान में संजय मैटरनिटी सेंटर की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सुजाता संजय ने महिलाओं एवं किशोरियों को सेनेट्री नैपकीन वितरित करते हुए इसके इस्तेमाल से होने वाले फायदे के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि 2 करोड़ से ज्यादा महिलाएं सेनेट्री नैपकीन की बजाय असुरक्षित साधनों का इस्तेमाल करती हैं। उनमें इन्फेशन और कई गंभीर बीमारियों का कारण बन रहा है। मजबूरी में ज्यादातर लड़कियां हर माह पांच दिन स्कूल से छुट्टी पर रहना पसंद करती है।
डॉ. सुजाता संजय ने बताया कि पिछले आठ सालों से महिलाओं को निःशुल्क सेनेटरी नैपकिन वितरित कर रही है। उन्होंने कहा कि महिलाओं में पीरियड्स को लेकर बहुत सन्कोच है और कुछ महिलाएं तो इसे कुदरत का प्रकोप भी मानती हैं और भगवान का अभिशाप भी। लेकिन जब हमें समझाया गया यह अभिशाप नहीं बल्कि एक शारीरिक प्राकृतिक प्रक्रिया है जो भगवान की देन है, इसमें घबराने और शर्म जैसी कोई बात नहीं है। लेकिन अगर सफाई नहीं रखेंगी तो बार-बार बीमार होंगी और यहीं से सेनेट्री नैपकीन देने की शुरूआत हुई। लगभग आठ वर्षो से डॉ. सुजाता संजय द्वारा 2000 हजार से भी ज्यादा सेनेट्री नैपकीन वितरित कर चुकी हैं जिसका सारा खर्च वह खुद वहन करती हैं।
डॉ. सुजाता संजय बस्तियों में जाकर महिलाओं को सेनेट्री नैपकीन निःशुल्क उपलब्ध करा रही हैं इसके साथ ही महिलाओं से बात करती हैं और नैपकिन को उपयोग करने की सलाह देती हैं जबकि शुरूआत में झुग्गी झोपडियों में रहने वाली महिलाओं ने सेनेट्री नैपकीन लेने से मना करती थी, क्योंकि उनका मानना था कि महावारी के समय कपड़ा ही सही होता है। सेनेट्री नैपकीन खरीदने के लिए उनके पास पैसे भी नहीं होते और उन्हें मर्दों से शर्म भी आती है। कई महिलाओं ने तो यहां तक कह दिया कि यह पैड बीमारी का घर होते हैं और हम इसका उपयोग नहीं करेंगे। लेकिन डॉ. सुजाता संजय ने हार नहीं मानी और वह लगातार सेनेट्री नैपकीन लेकर उनसे संपर्क करती रही, धीरे-धीरे उन्हें समझाया और जागरूक किया।
डॉ. सुजाता संजय ने बताया कि 70 प्रतिशत महिलाएं एवं लड़कियां आर्थिक तंगी के कारण सेनेट्री नैपकीन उपयोग नहीं कर पाती हैं, भारत के अत्यंत पिछड़े इलाकों में महिलाएं सेनेट्री पैड की जगह कपड़े का प्रयोग करती है, इस अस्वच्छता के कारण ग्रामीण महिलाओं को विभिन्न संक्रमण हो जाते हैं, जिनसे भारत में सरवाइकल कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। मासिक चक्र अलग-अलग होता है। ज्यादातर स्त्रियों को भी चार-पाँच दिन तक रक्त जाता है। यह क्रम हर एक स्त्री में अलग-अलग होता है किन्तु एक बार जो क्रम बने वही जारी रहना चाहिए। तभी मासिक चक्र को सही कहा जाता है।
डॉ. सुजाता संजय को उत्कृष्ट सामाजिक एवं चिकित्सीय सेवाओं को देने के लिए वर्ष 2016 में भारत की 100 सशक्त महिलाओं में चुनकर राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।