जनजाति क्षेत्रों मे मुहैया होगी शत प्रतिशत सुविधाएं, जनजाति विभाग होगा नोडल एजेंसी – News Debate

जनजाति क्षेत्रों मे मुहैया होगी शत प्रतिशत सुविधाएं, जनजाति विभाग होगा नोडल एजेंसी

19 साल से जनजाति और बाल अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे जगपांगी जन जाति के प्राकृतिक आवास मे रहने के पक्षधर

देहरादून। पीएम जन मन योजना के अंतर्गत प्रधानमंत्री जनजाति महा न्याय योजना से उत्तराखंड के जनजाति क्षेत्रों में शत प्रतिशत अवस्थापना सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। राज्य के 9 नौ विभागों को इसमें जोडा गया है। जनजाति विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है।

उत्तराखंड जनजाति विभाग के अपर निदेशक ने बताया कि एक सर्वे रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि राज्य में निवास कर रही राजि व बोक्सा जनजाति क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं का अभाव है। केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री जन मन योजना के अंतर्गत संचालित प्रधानमंत्री जनजाति महायोजना से जनजाति क्षेत्रों को अवस्थापना सुविधाओं से आच्छादित करने का फैसला लिया है। .इस योजना के तहत राजि व बोकसा जनजाति के लोगों तक 100 फीसद सुविधाएं पहुचानी हैं। ग्राम्य विकास, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, बिजली , स्वास्थ्य , बिजली, पेयजल, शिक्षा, महिला व वाल विकास विभाग शामिल हैं जो जनजाति विभाग की देखरेख में काम करेंगे। अपर निदेशक का कहना है कि राज्य में जनजाति परिवारों के लिए 1480 मकान, छह सड़कें, तीन छात्रावास, स्वास्थ्य सुविधा के लिए 16 मोबाइल वैन , छह कम्युनिटी सेंटर, पानी के कनेक्शन आदि स्वीकृत हुए हैं। पिथौरागढ़ व चंपावत जिले में राजि जनजाति के कई परिवार हैं जबकि उधम सिंह नगर ,हरिद्वार व देहरादून में बोक्सा जनजाति के लोग रह रहे है।

राजि जनजाति के विकासखंड( ग्राम सभा/ गांव) .

विकास खंड कनालीछीना: औलतड़ी, डांगरी, जमतड़ी, क्यूलेख, कंतोली .विकास खंड डीडीहाट: खेतार, कन्याल, चौरानी, बूटा, मदनपुरी .विकासखंड धारचूला: तोली, दूतीबगड़, किमखोला, गैना गांव, चिपलतटा व भगतिसवा आदि है।

जन जाति के प्राकृतिक आवास के पक्षधर हैं जंगपांगी

19 वर्षों से जनजाति के बच्चों के सरंक्षण के लिए आंदोलन कर रहे जसबंत सिंह जंगपांगी जन जाति समूहों को उनके प्राकृतिक आवास मे ही रखने के पक्षधर है। उनका कहना है कि उन्हें सुविधाएं मिले, लेकिन उन पर कुछ थोपा न जाए। जगपांगी राजी जन जाति के बच्चों को सजा और उनकी रिहाई के लिए आंदोलन कर चुके हैं। हालांकि वह व्यवस्था से नाखुश हैं। उनका कहना है कि अबोध बच्चों को जेल मे आम कैदियों के साथ रखा गया था और बाल सरंक्षण कानून तथा दुर्लभ जनजाति के मानकों को तब जांच मे नही परखा गया। वह आज भी उन मुद्दों को लेकर मुखर हैं।

जंगपांगी को बाल संरक्षण आयोग की ओर से पुरस्कार दिया जा चुका है। आज भी घंटाघर से लेकर परेड ग्राउंड तक बाल सरंक्षण की अलख जगाते हुए उनका अस्थायी अड्डा बना हुआ है। देहरादून से लेकर दिल्ली तक वह सत्ता के गलियारों में आवाज उठा रहे हैं।

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