शब्दावली Valley Of Words अन्तर्राष्ट्रिय कला एवं साहित्य समारोह में डा. निशंक के जीवन संघर्ष और साहित्य सृजन पर विशेष सत्र
देहराइन। शब्दावली Valley Of Words के अन्तर्राष्ट्रिय कला एवं साहित्य समारोह में देश के पूर्व शिक्षा मंत्री और सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक ने कहा कि साहित्य और राजनीति को अलग करके देखने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि हिन्दी का साहित्य अपने स्वर्णिम काल की ओर अग्रसर है।
देहरादून में आयोजित दो दिवसीय शब्दावली Valley Of Words अन्तर्राष्ट्रिय कला एवं साहित्य समारोह में डा० निशंक के जीवन संघर्ष और साहित्य सृजन पर विशेष सत्र (Life time in literature and politics) का आयोजन किया गया ।
डा. निशंक ने अपने जीवन संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि वह बेहद मामूली पारिवारिक पृष्ठभूमि से आये हैं और इसीलिए वे अधिक संवेदनशील हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति में रहते हुए उन्होंने कभी किसी पद से प्रेम नहीं किया इसलिए किसी पद का रहना या न रहना उनके लिए बाधक नहीं होता।
विशेष राजनीतिक विचारधारा के लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने केदारनाथ त्रासदी पर आधारित उनकी पुस्तक का हवाला देते हुए कहा कि संवेदनाओं पर राजनीति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे जैसी हैं वैसी ही रहती है।
हिन्दी लेखकों पर आजीविका के संकट के बारे में उन्होंने कहा कि आने वाला समय हिन्दी का है। आजीविका के लिए लेखन और प्रकाशन को पाठक चाहिए होते हैं। इसके लिए मेहनत तो करनी पड़ेगी।
कार्यक्रम में श्रोताओं के प्रश्नों तथा विद्यार्थियों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए डा० निशंक ने समय-प्रबंधन की महत्ता पर बल दिया।
डॉ सुशील उपाध्याय द्वारा संचालित इस सत्र में डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. प्रमोद भारती, डॉ. राम विनय, डॉ. सविता मोहन सहित अनेक वरिष्ठ साहित्यकार, हिंदुस्तान की पूर्व संपादक मृणाल पांडेय और दून विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. सुरेखा डंगवाल भी उपस्थित थी।