(देवेन्द्र के. बुडाकोटी)
परंपरागत रूप से भारतीय विवाह तय होते थे, और उनकी वैधता का सबसे बड़ा आधार होता था लड़की और लड़के की कुंडली मिलान। लेकिन कुंडली मिलान पहला फ़िल्टर कभी नहीं था। ग्रह-नक्षत्र देखने से पहले परिवार वर्ग, जाति, जातीयता और कुल-खानदान को अपने गहरे रिश्तेदारी जाल के माध्यम से परखते थे। न निजी जासूसों की ज़रूरत थी, न वैवाहिक सेवाओं की—यह भूमिका चुपचाप कुल-पुरोहित निभा लेते थे। रिश्तेदारी ही सबसे विश्वसनीय सत्यापन प्रणाली थी।
आज, तीव्र शहरीकरण और बड़े पैमाने पर पलायन के कारण परिवार अपने मूल गाँवों और कस्बों से दूर बिखर गए हैं। पारंपरिक रिश्तेदारी नेटवर्क ढीला पड़ा है और विवाह अब वर्ग, जाति और जातीय सीमाओं से बाहर भी होने लगे हैं। जिसे हम लोकप्रिय रूप से “लव मैरिज” कहते हैं, वह सामान्य हो चुका है, फिर भी बहुत-से परिवार विवाह संस्कारों से पहले अब भी कुंडली मिलान पर टिके हुए हैं। रिश्तेदारी कमजोर होने के साथ, परिवार जीवनसाथी ढूँढने के लिए वैवाहिक सेवाओं पर निर्भर होने लगे हैं—हालाँकि वे अब भी वर्ग, जाति और जातीय संगति को देखते हैं। कुछ लोग उम्मीदवार की सत्यता जाँचने के लिए निजी जासूसों का सहारा भी लेते हैं।
बढ़ती शिक्षा, कार्यक्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी, आर्थिक स्वतंत्रता और लैंगिक भूमिकाओं के धुँधलाने ने परिवारों में नए तनाव पैदा किए हैं। पारंपरिक सास-बहू सत्ता-संतुलन की खींचतान भी बनी हुई है। भारत का तलाक़ दर अब भी दुनिया में सबसे कम है, फिर भी पारिवारिक अदालतें वर्षों से लंबित मामलों से भरी पड़ी हैं। इन्हीं परिस्थितियों में प्री-वेडिंग काउंसलिंग का चलन बढ़ा है। इसका उद्देश्य सरल पर अत्यंत महत्वपूर्ण है—अनुकूलता को समझना, अपेक्षाओं को स्पष्ट करना और उन मुद्दों पर बात करना जो आगे चलकर विवाद बन जाते हैं।
रुचियाँ, शौक और जीवन-दृष्टि पर चर्चा होती है, लेकिन साथ ही व्यावहारिक सवाल भी पूछे जाते हैं—विवाह खर्च और रस्में, उपहारों का आदान-प्रदान, विवाह के बाद बहू के नौकरी करने का प्रश्न, बच्चों का समय, माता-पिता के साथ रहने की व्यवस्था, तथा घरेलू ज़िम्मेदारियों का बँटवारा। इन पर पहले से बातचीत विवादों को बढ़ने से रोक सकती है।
भारतीय समाज अब भी इसलिए मज़बूत है क्योंकि परिवार संस्था अब भी मजबूत है। इसके विपरीत, पश्चिमी समाजों में परिवार संरचना टूटने की चर्चा होती है—जहाँ तलाक़ दर अधिक है, बच्चों में अपराध और अव्यवस्था बढ़ी है, और युवाओं में नशाखोरी व अपराध के मामले बढ़े हैं। क्या हम ऐसा सामाजिक परिवर्तन चाहते हैं?
मुझे नहीं पता कुल-पुरोहित इस पर क्या कहेंगे, पर अरेंज्ड हो या लव मैरिज—अधिकांश भारतीय अब भी कुंडली मिलाते हैं। सूर्य-चंद्र की जन्मस्थिति पर आधारित इसकी पद्धति को “समय-परीक्षित” कहा जाता है, हालाँकि नई और पुरानी दोनों पीढ़ियों में इसके प्रति संदेह है।
इसी संदर्भ में, प्री-वेडिंग काउंसलिंग के बढ़ते महत्व को देखते हुए दून विश्वविद्यालय ने देवभूमि विकास संस्थान के सहयोग से—जो उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरिद्वार के वर्तमान सांसद त्रिवेन्द्र सिंह रावत से संबद्ध है—15 नवंबर 2025 को एक संगोष्ठी आयोजित की। प्रो. एच.सी. पुरोहित ने इसे अत्यंत सुगठित रूप से संचालित किया और विषय के विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, विधि-विशेषज्ञों और संबंधित व्यक्तियों को अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया।
तो आज हम पसंद-नापसंद, अपेक्षाएँ, रुचियाँ और जीवन-लक्ष्यों को देखते हैं। क्या कुंडली मिलान इस संदर्भ में असफल हो गया है? आधुनिक, नगरीकृत भारत में विवाह संस्था कब तक अक्षुण्ण रहेगी? परिवार की जड़ें यहाँ गहरी हैं, और विवाह उसी से बँधा है। आखिरकार—मेरे पास माँ है—हमारे पास अब भी परिवार है।
लेखक समाजशास्त्री हैं और चार दशकों से विकास क्षेत्र से जुड़े हैं।