देहरादून। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ सुजाता संजय ने कहा कि
प्रसव के बाद शुरूआती एक घंटे में स्तनपान कराना बच्चे के लिए अमृत समान है। उन्होंने कहा कि नर्से स्तनपान जागरूकता में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
संजय ऑर्थोपीड़िक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर, जाखन के तत्वाधान मे विश्व स्तनपान सप्ताह (1-7 अगस्त) को लेकर स्तनपान ओरिएंटेशन कार्यशाला मे डॉ. सुजाता ने कहा कि मां का दूध बच्चे के लिए अमृत से कम नहीं है। यह न सिर्फ शिशु के सर्वांगींण विकास के लिए जरूरी है, बल्कि इससे मां को भी मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य लाभ होता है। जन्म के शुरूआती एक घंटे में शिशु के लिए मां का दूध अत्यन्त जरूरी है। बावजूद इसके स्तनपान को लेकर अभी भी लोगों में काफी भ्रातियां फैली हुई है। आज भी लोगों में स्तनपान की जरूरतों के प्रति जागरूकता की कमी है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के करीब 77 करोड़ नवजात या हर दो में से एक शिशु को मां का दूध पहले घंटे में नहीं मिल पाता है। यह आंकडा शिशु मृत्यु दर के लिए बेहद अहम हैं। दो से 23 घंटे तक मां का दूध न मिलने से बच्चे के जन्म से 28 दिनों के भीतर मृत्यु दर का आंकडा 40 फीसदी होता है, जबकि 24 घंटे के बाद भी दूध न मिलने से मृत्यु दर का यही आंकडा बढकर 80 प्रतिशत तक हो जाता है। देश में नवजात शिशुओं की मौत की सबसे बडी वजह मां का दूध नहीं पिलाया जाना भी है। सरकारी आंकड़ो के अनुसार देश में 5 साल से कम आयु केे 42,5 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 69,5 प्रतिशत बच्चे खून की कमी से जुझ रहे हैं। दुनिया के 10 अविकसित बच्चों में से चार भारतीय होते है। और पांच साल से कम उम्र के लगभग 15 लाख बच्चे हर साल भारत में अपनी जान गंवाते हैं।
डॉ. सुजाता संजय ने छात्र-छात्राओं को स्तनपान के महत्व के बारे में बताया कि मातृत्व स्त्री के जीवन की संपूर्णता एवं सार्थकता समझी जाती है। इस वर्ष की थीम स्तनपान के लिए संकल्प-कामकाजी माता-पिता के लिए विशेष प्रयास है। उन्होंने बताया कि स्तनपान हर बच्चे का अधिकार है। ऑफिस संस्थानों को इस बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है, जिससे कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को समुचित स्तन पान करा सकें। यदि प्रत्येक ऑफिस में कामकाजी महिलाओं की जरूरत के हिसाब से सुविधाजनक ब्रेस्टफीडिंग कक्ष की व्यवस्था हो तो महिला कर्मचारियों की कार्य क्षमता में तेजी आ सकती है। वर्ल्ड इकोनामिक फोरम के ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत में 20.33 फीसदी कामकाजी महिलाएं हैं, जिनमें से केवल 40 फीसदी कामकाजी माताएं ही अपने बच्चों को 6 माह तक स्तनपान और 2 साल तक की पूरक भोजन के साथ विशेष रूप से ब्रेस्ट फीडिंग करा पाती हैं।
बच्चे की सेहत अच्छी बनी रहे, तो अपनी डाइट में हल्दी को अधिक शामिल करें। हल्दी के सेवन से स्तनपान कराने वाली महिलाओं को फायदा होता है। हल्दी में मौजूद पोषक तत्व दूध पिलाने के दौरान आपको कई तरह के इंफेक्शन से बचा सकते हैं, जिससे शिशु की सेहत पर भी कोई नकारात्मक असर नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि माँ का दूध शिशु के लिए परिपूर्ण आहार है। माँ का दूध सुपाच्य होता है जिससे यह शिशु को पेट सम्बन्धी गड़बड़ियों से बचाता है। स्तनपान से दमा और कान सम्बन्धी बीमारियाँ नियंत्रित रहती हैं, क्योंकि माँ का दूध शिशु की नाक और गले में प्रतिरोधी त्वचा बना देता है। स्तनपान से जीवन के बाद के चरणों में उदर व श्वसन तंत्र के रोग, रक्त कैंसर, मधुमेह तथा उच्च रक्तचाप का खतरा कम हो जाता है। उन्होंने कहा कि शिशु को स्तनपान कराने में मां का भरपूर सहयोग करना हम सबकी जिम्मेदारी है और इसमें पति, परिवार, समाज, कार्य क्षेत्र सभी को अपना सहयोग करना चाहिए।
जन-जागरूकता व्याख्यान में उत्तरप्रदेश , उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व पंजाब से 150 से अधिक मेडिकल, नर्सिंग छात्रों व किशोरियों ने भाग लिया।