देहरादून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह और अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश जोशी उपाख्य भैयाजी जोशी ने कहा कि भारतीय चिंतन और अवधारणा वैश्विक है। हमारा एक आचरण है जो वैश्विक चिंतन का है। उन्होंने कहा कि पूरा भारत देवभूमि है और उत्तराखंड देवभूमि का नेतृत्व करता है। उन्होंने कहा कि इसे सुयोग ही कहेंगे कि मानव जाति का विकास, समूह विकास तभी संभव है जब हम सृष्टि को समझें और इसके लिए संतुलन आवश्यक है।
यह विचार भैयाजी जोशी ने राजधानी देहरादून में विज्ञान भारती, उत्तराखंड और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (भारत सरकार) के जीवन के लिए ‘आकाश तत्व पर पंच भूत’ विषयक संगोष्ठी के दूसरे दिन शनिवार को उद्घाटन सत्र में व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि भारत का इतिहास हमेशा विश्व से अनूठा रहा है। हमें सही मार्ग पर चलकर विश्व को नेतृत्व देना है। उन्होंने कहा कि भारतीय मनीषा में लेना नहीं केवल देने के मार्ग पर ही चलना होता है।
भैयाजी जोशी ने कहा कि अमेरिका से ज्यादा भारत के लोग सुखी हैं। इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा, सभ्यता, संस्कृति अन्य राष्ट्रों से अलग है। उन्होंने भारतीय व्यवस्था की चर्चा करते हुए कहा कि भारत में रबी, खरीफ और जायद तीन-तीन फसलें ली जाती हैं। यह अन्य देशों की तुलना में अलग है जबकि विश्व के अन्य देश इस मान्यता, परम्परा और मानकों के नहीं हैं।
उन्होंने संतों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे साधु-संत और अन्य अवतार हुए हैं कि जिन्होंने बताया कि जीवन कैसा होगा? इस संदर्भ में हमें चिंतन करना होगा। संतुलन के आधार पर ही गुणों से युक्त व्यक्ति की भारत में पूजा होती है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन बौद्धिक सम्पदा पर आधारित है। मानव जीवन की 85 फीसदी संपदा पर 10 फीसद लोगों का अधिकार है। यह परम्परा बहुत श्रेष्ठ नहीं मानी जा सकती। उन्होंने कहा कि भारत भी विश्व में 17 प्रतिशत से अधिक योगदान करने वाला देश बन सकता है लेकिन इसके लिए हमें गलत दिशा छोड़कर अच्छे मार्ग पर चलना होगा।
भैयाजी जोशी ने आकाश तत्व की चर्चा करते हुए कहा कि पंच भूत में आकाश तत्व का विशेष महत्व है। आकाश तत्व सर्व व्याप्त है। संपर्क का सबसे आसान मार्ग भी है। उन्होंने कहा कि आकाश तत्व रिक्त स्थान है,आंतरिक और बाहर के आकाश को हमें समझना होगा।
उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता और संस्कृति पंच महाभूत पर आधारित है। लोग भले ही वैज्ञानिक और सामाजिक रूप से इसको अलग-अलग मानते हों लेकिन हमारे ऋषियों, मुनियों ने इस सत्य को समझा, जाना और कार्य संस्कृति में अपनाया है। हमें इस पंच महाभूत को समझना होगा। यथार्थ सत्य यही है कि हम जहां से आए, वहीं जाना है।