नमक मिलावट: सरदार, मैंने आपका नमक खाया है – News Debate

नमक मिलावट: सरदार, मैंने आपका नमक खाया है

(देवेन्द्र के. बुड़कोटी)

नमक मिलावट का हालिया मामला सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया और बाद की सरकारी प्रयोगशाला जाँच ने यह स्पष्ट कर दिया कि नमक में मिलावट वास्तव में मौजूद थी। यह घटना दिखाती है कि राज्य और समाज के वास्तविक हालात को उजागर करने में सोशल मीडिया कितनी निर्णायक भूमिका निभा रहा है। सरकार भले यह कहकर जिम्मेदारी टालने की कोशिश करे कि पीडीएस प्रणाली से आने वाला नमक राज्य के बाहर से आता है और उसने केवल नमूनों की जाँच कर अपना काम पूरा कर दिया है, लेकिन वह इस घटना के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव को समझने में विफल रही है। भारतीय समाज में नमक का महत्व साधारण उपयोग से कहीं अधिक गहरा और संवेदनशील है।

इतिहास और राजनीति की दृष्टि से, दांडी मार्च और महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह को हर भारतीय पढ़ता है। मार्च 1930 में शुरू हुए इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन द्वारा लगाए गए नमक कर के विरुद्ध पूरे राष्ट्र को एकजुट कर दिया। एक साधारण प्रतीत होने वाली वस्तु ने लाखों लोगों को औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ खड़ा कर दिया। यह राजनीतिक प्रतिरोध जितना महत्वपूर्ण था, उतना ही यह भारत में नमक के सांस्कृतिक महत्व का भी प्रमाण था।

हिंदू परंपरा में नमक को पवित्रता, सुरक्षा और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। घरों में नमक की डिब्बी खाली नहीं छोड़ी जाती, नमक उधार नहीं दिया जाता, और प्लेट में बचा नमक सीधे फेंकने के बजाय पानी में घोलकर निपटाया जाता है। भारत सहित दुनिया के कई पारंपरिक समाजों में नमक का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों, अलौकिक उपचारों और सांस्कृतिक प्रतीकों में किया जाता रहा है।

देहरादून जिले के जौनसार क्षेत्र में नमक का महत्व और भी सामाजिक है। यहाँ शपथ, सत्यापन और विवाद समाधान में नमक का प्रयोग परंपरागत रूप से होता रहा है। प्रसिद्ध “लोटा-नून” प्रणाली में, जब किसी विवाद का समाधान सामान्य तरीकों से नहीं निकल पाता था, तब स्थानीय देवता की उपस्थिति में नमक का उपयोग सत्य निर्धारण के लिए किया जाता था।

उत्तराखंड के भोटिया समुदाय द्वारा किए जाने वाले ऐतिहासिक भारत–तिब्बत व्यापार में भी तिब्बती नमक एक प्रमुख विनिमय वस्तु थी। इससे न केवल आर्थिक संबंध बनते थे बल्कि सांस्कृतिक आदान–प्रदान भी मजबूत होता था।

ऐसे में पीडीएस के नमक में मिलावट का मामला केवल एक तकनीकी या प्रशासनिक त्रुटि नहीं है। सरकार द्वारा यह कह देना कि नमक बाहर से आता है, उसकी संवेदनहीनता को दर्शाता है। नमक जैसी सांस्कृतिक रूप से पवित्र वस्तु में छेड़छाड़ से जनविश्वास पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और इसके राजनीतिक निहितार्थ भी दूरगामी हो सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि राज्य इस मुद्दे को केवल खाद्य सुरक्षा उल्लंघन के रूप में न देखकर उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक परतों को भी समझे और जिम्मेदार कार्रवाई करे। लेखक एक समाजशास्त्री हैं और लगभग चार दशकों से विकास क्षेत्र में सक्रिय हैं। इसलिए यह अनिवार्य है कि सरकार आपूर्ति श्रृंखला की पूरी समीक्षा करते हुए उन समुदायों के सांस्कृतिक विश्वासों और परंपराओं को ध्यान में रखे जिनके जीवन में नमक केवल भोजन का हिस्सा नहीं, बल्कि सामाजिक आस्था का आधार भी है।

लेखक एक समाजशास्त्री हैं और लगभग चार दशकों से विकास क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।

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