देहरादून। सरकार की स्वास्थ्य को लेकर तमाम घोषणाएं और दावे जमीनी हकीकत से कोसो दूर है। हालात यह है की दूर दराज के क्षेत्रो से आने वाले मरीजों को सुविधासंपन्न शहरी क्षेत्रों के सरकारी अस्पतालो मे भी इलाज मुहैया नहीं हो पा रहा है।
मामला कोटद्वार राजकीय संयुक्त चिकित्सालय का है,जहां एक गर्भवती के इलाज और प्रसव के लिए चिकित्सकों ने हाथ खड़े कर दिए और मज़बूरी में परिजन उसे निजी चिकित्सालय ले गये जहां भारी भरकम खर्च के बाद जच्चा बच्चा की जान बच गई।
रिखणीखाल प्रखंड का एक दुरस्थ गांव ” बराई धूरा” से एक गरीब परिवार की महिला श्रीमती पूजा रावत पत्नी अशोक रावत प्रसव के लिए विगत दिवस बेस अस्पताल कोटद्वार पहुचीं। बताया गया कि असहनीय पीड़ा से तड़प रही महिला को डाक्टरों ने प्रसव कराने में हाथ खड़े कर दिए। इसके लिए ऑपरेशन की जटिलता और व्यवस्थाओं का अभाव बताया गया। परिजन आनन फानन में प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को प्राइवेट अस्पताल ले गये जहां उसकी सर्जरी करायी गयी और जच्चा बच्चा की जान बची। हालांकि इसके लिए उन्हें भारी भरकम राशि चुकानी पड़ी।
रिखणीखाल अस्पताल भी शो पीस
रिखणीखाल ब्लॉक के नजदीक अथवा दूर दराज क्षेत्र के लोग सैकड़ो किमी दूर कोटद्वार पर है निर्भर है। अस्पताल मे डॉ है,लेकिन टेक्निशियन नहीं है। मशीने धूल फांक रही है। हाल ही में एक स्टूडेंट के हाथ में फैक्चर के बाद हाथ में गत्ता बाँधने की तस्वीर शोसल मीडिया में खासी वायरल हुई थी। इसने पहाड़ो में स्वास्थ्य अव्यवस्थाओं की पोल खोल दी थी। नजदीक अस्पताल होने के बाद भी लोग रिस्क लेने के बजाय कोटद्वार का रुख करते हैं। हालांकि उन्हें यहाँ खासा महँगा पड़ता हैं। बेस अस्पताल कोटद्वार जनपद गढ़वाल के रिखणीखाल, जयहरीखाल,नैनीडान्डा, द्वारीखाल, यमकेश्वर, दुगड्डा, कल्जीखाल, बीरोखाल,पोखडा आदि विकास खंडों का प्रमुख अस्पताल है।
सामाजिक कार्यकर्ता प्रभुपाल सिंह का कहना है कि अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाये दुरुस्त करने की चुनौती बनी हुई है। कई बार तो पांच लाख की आयुष्मान कार्ड की उपयोगिता पर भी सवाल खड़े होते हैं। गर्भवती महिलाओंं को सुरक्षित प्रसव के लिए सरकार की कई योजनाओं की घोषणा है,लेकिन ज़मीन पर नहीं दिख रही है।